आज़ादी का जश्न

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शैलेन्द्र कुमार सिंह | ग्राफ़िक्स : आकृति सेन

अपने खून से खीचीं हैं लकीरें
ऐ लोगों न तुम उसे भूला देना
ये तिरंगा तीन रंगों का बना भले है
इसमें हमारी याद भी मिला लेना ।
इस मिट्टी का तिलक किया हमनें
हँसकर फाँसी पर गए हम झूल
हमारे वतन की वफादारी को कभी
तुम अपने स्वार्थ के बीच न ला देना ।
न थे हम हिन्दू, न मुस्लिम
न थे सिख, न ईसाई कभी
हम वतनों को जो कभी याद करो
उसमें थोड़ी इंसानियत भी मिला देना ।
हमें किसी मंदिर में न ढूँढना
हमें किसी मस्जिद में न ढूँढना
हमारा वास्ता मिट्टी के हर कण से है
जो तुम कभी हमें महसूस करना चाहो
देश की मिट्टी को मस्तक से लगा लेना ।
आजादी का ये जश्न लोगों
आते और जाते रहेंगे
फुरसत जो मिले कभी तुम्हे कहीं
शहीदों के नाम एक दीपक ‘शैलेन्द्र’
तुम चुपके से यूँ ही जला देना ।
तुम्हारी मुस्कराहटों में हम खिल जाएंगे
अपनी कुर्बानियों की खुशी भी मिल जाएंगे
जब भी मौका मिले ऐ मेरे देश के लोगों तुम
खुशी के आँसू में हमारे दामन भींगा देना ।

Author: admin_plipi