लेखक: शैलेन्द्र कुमार सिंह
ग्राफिक्स: गौतम सेन
मै बेजुबान तुम बुद्धिमान
ऊँचे ऊँचे अट्टालिकाओं में तुम रहते
अपने स्वार्थ में नित्य बहते
अपनी इच्छाओं में कैद हो
तुम कैसे हो गए इतने नादान
मै बेजुबान तुम बुद्धिमान !
तुम्हारी दया पर हमारी दृष्टि
तुम्हारी कायल पूरी सृष्टि
बुद्धिमान होकर तुम
कैसे न रख पाए
इंसानियत की मान
मै बेजुबान तुम बुद्धिमान !
जब से सृष्टि तब से
तुम्हारी जय जयकार
चर अचर देवता दानव
करते रहे सदा तुमसे प्यार
विश्वास की कीमत में तुमने
निकाली कितने अपनो की जान
मै बेजुबान तुम बुद्धिमान !
सृष्टि में प्रलय
तुम्हारा प्रतिकार
तुम्हारी प्रतिहिंसा में
सृष्टि की हार
सब कुछ, स्वर्ग-सा सुख
पाने की चाह ने “शैलेन्द्र”
शायद तुम्हे बनाया है बेईमान
मै बेजुबान तुम बुद्धिमान !